जानें कितनी सच्चाई है प्रज्ञा ठाकुर के बयान में, की गोडसे राष्ट्रभक्त थे, उसके बाद आप खुद तय करें

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साध्वी प्रज्ञा जिन्हे बीजेपी ने टिकट देकर भोपाल में दिग्विजय के खिलाफ उतारा था, उन्होंने दिग्विजय को हराकर बीजेपी के पाले में एक सीट तो जरूर डाली लेकिन अपने विवादित बयानों से वह बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाने का काम ज्यादा कर रही हैं.

इसी कड़ी में उन्होंने फिर एक बार लोकसभा में गोडसे को राष्ट्रभक्त का खिताब दे दिया, इसी के साथ विवाद और चर्चाओं को नया मुद्दा मिल गया. मुद्दाहीन विपक्ष फिर एक बार लोकसभा में हंगामा करने में कामयाब रही और साध्वी प्रज्ञा के ब्यान पर बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं को सामने आकर ब्यान देना पड़ा.

लेकिन लोकसभा में कही गयी इस बात का फिर एक बार सवाल खड़ा हुआ की क्या सच में गोडसे राष्ट्रभक्त था. क्या गाँधी जी की हत्या की जानी जरूरी थी? उसके इलावा और दूसरा कोई विकल्प मजूद नहीं था? आज हम ऐसे ही कुछ तथ्य आपके सामने रखेंगे, जिसके बाद आप खुद फैसला कीजियेगा की गोडसे राष्ट्रभक्त था या नहीं.

नाथूराम गोडसे ने गाँधी हत्या को वध करार दिया था, उन्होंने कहा था की हत्या इंसान की होती है राक्षस का वध होता है. इसके पीछे का कारण उन्होंने बताते हुए कहा था की, गाँधी ने कहा था की भारत के टुकड़े उनकी लाश पर होंगे, लेकिन अंत में उनके ही समर्थन से एक से दो देश बने.

धर्म के आधार पर दो देशों का बंटवारा होने के बावजूद भारत में मुस्लिमों को रहने का अधिकार दिया था. जो देश अलग हुआ वो मुस्लिम राष्ट्र बना, उस हिसाब से भारत को हिन्दू राष्ट्र बनना चाहिए था लेकिन इसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र बना दिया गया.

गाँधी जी चाहते तो लाल किले पर भगवा लहरवा सकते थे, लेकिन उन्होंने तिरंगा लहरवाया. इसके इलावा विभाजन के समय लगभग 4 लाख हिन्दू परिवार भारत आये थे. मुस्लिम लीग ने उन्हें कपड़ो के इलावा कुछ भी साथ लाने की इज्जाजत नहीं दी थी.

ऐसे में उन हिन्दू परिवारों की रातों रात सालों की जमा पूंजी मुस्लिमों की हो गयी, उनकी बेटियों, बहुवों और माताओं के साथ बलात्कार हुआ. कुछ तो ऐसे परिवार भारत लौटे थे जिनके घर की एक भी औरत पाकिस्तान से भारत नहीं पहुंची थी.

इन सबके बावजूद गाँधी जी पाकिस्तान को 56 करोड़ रूपए देने के लिए अनशन पर बैठ गए थे. उसके बाद जो परिवार दिल्ही में आकर बसे थे उनके रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी. दिल्ली पुलिस ने मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों के भीतर इन लोगो के रुकने का इंतजाम करवाया.

इस पर भी महात्मा गाँधी ने बिरला भवन से ब्यान दिया था की मस्जिदों में गैर मुस्लिमों (हिन्दुवों) को नहीं रहना चाहिए. बस फिर क्या था रातों रात पुलिस ने दिल्ली की सभी मस्जिदें खाली करवा दी. इसके बाद बारी आयी पाकिस्तान द्वारा उत्तरी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने वाले रास्ते को लेकर मांग की.

उस वक़्त जहां सभी राजनेता इस मांग को खारिज कर रहे थे वहीं महात्मा गाँधी इस रास्ते के लिए कुछ दिनों बाद अनशन करने वाले थे. गोडसे का कहना था की अभी बंटवारे मरे हुए हिंदुवो की चिताओं की आग ठंडी भी नहीं हुई की गाँधी एक और हिस्सा पाकिस्तान को देना चाहते हैं.

इस के बाद ही गोडसे ने गाँधी के वध करने का प्रण लिया था. वैसे तो गोडसे ने इस वध को लेकर अदालत में बहुत ही ज्यादा लम्बा भाषण दिया था और पुरे भाषण को महाभारत के युद्ध से जोड़ दिया था. माना जाता है की जब गोडसे ने अपनी बात कहना शुरू की थी तो पूरी अदालत एक दम शांत थी, सब उसकी बातों को गौर से सुन रहे थे और इसी पर जज महोदय ने बाद में अपनी किताब में लिखा था की अगर जउरी की जगह वहां बैठे लोगों से फैसला सुनाने को कहा जाता तो सभी आरोपों से गोडसे और उसका साथी बाइज्जत बरी हो जाते.

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वैसे तो गोडसे ने गाँधी जी के वध को लेकर बहुत सारी बातें कही लेकिन यह उन बातों का निचोड़ था जो आपके सामने रखा गया. इसके बाद आप खुद ही फैसला कर सकते है की आप गोडसे को राष्ट्रवादी मानना पसंद करते है या फिर एक आतंकवादी मानना पसंद करते हैं.

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