![while-carrying-the-dead-body-to-the-crematorium-the-pronunciation-of-bhima-naam-satya-hai-1](https://yugnews.in/wp-content/uploads/2019/11/while-carrying-the-dead-body-to-the-crematorium-the-pronunciation-of-bhima-naam-satya-hai-1.jpg)
लेकिन जिस प्रकार पिछले 70 साल की राजनीती के चलते हिन्दू धर्म के एक बहुत बड़े वर्ग हरिजन समाज को सरकारी नीतियों के चलते हिन्दू धर्म से दूर किया गया उसका प्रभाव हमें आज देखने को भी मिलता है. हरिजन समाज आज, बाबा साहेब आंबेडकर को अपना भगवान् और संविधान को अपनी धार्मिक पुस्तक मानता है.
अगर हम मीडिया की बात करें उसने भी हरिजन समाज और हिन्दू धर्म को अलग-अलग ही रखा है. जैसे अगर कोई हरिजन समाज का व्यक्ति लड़की छेड़ता, या चोरी करता पाया जाता है तो उसके नाम के आगे हिन्दू शब्द का प्रयोग किया जाता है, वहीं अगर कहीं उसके साथ अत्याचार होता है तो मीडिया बताता है कैसे एक हिन्दू ने किसी दलित पर अत्याचार किया.
सोशल मीडिया पर यह आपसी फुट और ज्यादा बढ़कर बाहर आती है, जहां हरिजन समाज अपने ही देवी-देवताओं के लिए अपशब्दों का प्रयोग करता है वहीं कुछ लोग आरक्षण को लेकर बाबा साहेब आंबेडकर के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं.
हिन्दू धर्म में जब किसी इंसान की मृत्यु हो जाती है, तब उसे घर से श्मशान लेजाने तक “राम नाम सत्य है” है का उच्चारण किया जाता है. जिसका अर्थ होता है की “एक राम का ही नाम है, जो जीवन का सच है” बाकी संसार में सब मोह माया है.
लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में आप देख सकते है की कैसे हरिजन समाज के लोगों ने “राम नाम सत्य है” का बहिष्कार करते हुए एक मुर्दे को श्मशान ले जाते वक़्त “भीम नाम सत्य है, बुद्ध नाम सत्य है” जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहें है.
अगर हम आसान भाषा में उदाहरण दें तो एक परिवार में दो भाइयों में वैचारिक मतभेद हो सकते है, लेकिन इस वैचारिक मतभेदों में कोई भी भाई अपने माँ बाप के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं करता और न ही किसी दूसरे को जाकर अपना माँ बाप मान लेता है. तो सोचने वाले बात है फिर एक ही धर्म से जुड़े दो समाजों में अगर वैचारिक मतभेद हैं तो अपने भगवान् अपने आराध्य को छोड़कर किसी और को अपना भगवान् या आराध्य मान लेना या फिर उसके लिए अपशब्दों का प्रयोग करना कहाँ तक सही है?