
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की जानलेवा स्थिति और सरकारों की अकर्मण्यता को लेकर कड़े शब्दों में टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा की, “लोगों को गैस चैंबर में रहने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? अच्छा होगा कि बम विस्फोट कर उन्हें एक बार में ही मार दो.”
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा की आप लोग किसानो द्वारा जलाये जाने वाली पराली पर नियंत्रण क्यों नहीं रख पा रहे? इसके इलावा अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को कहा की, “क्या यह बर्दाश्त किया जाना चाहिए? क्या यह गृहयुद्ध से बदतर हालत नहीं है? बेहतर है कि सबको बम से उड़ा दीजिए. कैंसर जैसी बीमारियों से जूझने से बेहतर है कि लोग मर ही जाएं.”
सुप्रीम कोर्ट ने इसके इलावा राज्य सरकार और केंद्र सरकार से एयर क्वालिटी इंडेक्स, वायु गुणवत्ता प्रबंधन और कचरा प्रबंधन को लेकर भी ब्यौरा माँगा हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है की वह एक उच्च समिति का गठन करे जो टेक्नोलॉजी के माध्यम से राज्य की आबो-हवा सुधारने के लिए एक रिपोर्ट त्यार करे और यह सारा काम एक हफ्ते में पूरा हो.
दिल्ली की हवा को सुधारने के लिए जिन स्मॉग टावर की बात सरकारें कर रहीं थी कोर्ट ने कहा है 10 दिनों में इसपर भी कोई ठोस एक्शन लिए जाए जिसमे लगाने का स्थान और लगाने की डेड लाइन दोनों त्यार हों.
यही नहीं हवा के साथ-साथ कोर्ट ने नदियों की भी जानकारी मांगी है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सुप्रीम कोर्ट ने गंगा एवं यमुना समेत विभिन्न नदियों में जाने वाले सीवेज और कचरे को लेकर उठाये गए ठोस क़दमों पर एक रिपोर्ट बनाये जाने को कहा है.

अब देखना होगा की सरकारें सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद क्या स्मोक टावर्स का काम सरकार समय सीमा बनाकर पूरा करेगी या फिर दिल्ली के आने वाले चुनावों में वायु और जल प्रदुषण को लेकर राजनितिक मुद्दा बनाकर छोड़ देगी. यह तो खैर आने वाले कुछ दिनों में ही पता चलेगा.