भारत एक ऐसा देश हैं, जहां पहले तो पूरी तरह से इसका संविधान लागु नहीं है. दूसरा हर राज्य इन कानूनों को अपने हिसाब से प्रदेश में पारित भी करते है. जैसे गुजरात में शराब पीना अपराथ है लेकिन तम्बाकू खाना नहीं, बंगाल में तम्बाकू खाना अपराथ है लेकिन शराब पीना नहीं.
ऐसे में एक ही देश में रहने वाले नागरिक इन कानूनों के प्रति कभी संगीन नहीं होते शायद यही एक कारण भी है की मोदी सरकार देश में सिविल कोड लागु कराने पर विचार कर रही है. सिविल कोड लागु होने के बाद एक देश एक कानून लागु होगा. यानी जो कानून संविधान में बने है, वही पुरे देश में लागु होंगे. राज्य, धर्म, जाती के आधार पर राज्य इन कानूनों में बदलाव नहीं कर सकेंगे.
लेकिन अभी इसे होने में अभी वक़्त है और उससे पहले ही एक मामला हमारी कमजोर न्याय व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर देता है. रोहड़ू उप-तहसील के एक सरकारी स्कूल के एक मामले में प्रदेश हाईकोर्ट के जज सीबी बारोवालिया की एकल पीठ ने छात्राओं को छेड़ने और अश्लील व्यवहार करने वाले एक शिक्षक को अग्रिम जमानत दे दी है.
यह जमानत 25000 रूपए के सरकारी बॉन्ड जमा करने के बाद और रोज़ाना पुलिस ठाणे में हाजिरी लगाने की शर्त पर दी गयी है. आपको बता दें की इस आरोपी के खिलाफ आठ छात्राओं ने 25 अक्टूबर को पुलिस में रिपोर्ट दायर की थी.
पुलिस ने तुरंत जांच और कार्यवाही करते हुए छेड़छाड़ और पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज़ किया और आरोपी को गिरफ्तार किया लेकिन कमजोर न्याय व्यवस्था के चलते उसे मात्र 25000 रूपए की अग्रिम जमानत पर रिहा कर दिया.
बिना यह सोचे की आरोपी लड़कियों के घरवालों पर केस वापिस लेने के लिए दबाव बना सकता है. अक्सर ख़बरों में आपने सुना होगा की पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की या फिर आरोपी भागने में कामयाब रहे लेकिन जब पुलिस ने अपना काम कर दिया तो हमारी कमजोर न्याय व्यवस्था ने ही उसे जमानत पर रिहा कर दिया.
केस की अगली सुनवाई 14 नवंबर की है अब देखने वाली बात यह होगी की कोर्ट उन 8 लड़कियों को इन्साफ और भविष्य में कोई बड़ी घटना न हो इसके लिए कुछ फैसला ले पाता है या नहीं.