केरल हाईकोर्ट ने बलात्कारी को 8 महीने में दी जमानत, बेटी के पिता आरोपी के जेल से बाहर आते ही किया काम तमाम

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‘राजीव दीक्षित’ अक्सर कहा करते थे की, कोर्ट में बैठ जजों को खुद को न्यायधीश नहीं बल्कि क़ायदाधीश कहना चाहिए. न्यायधीश वो होता है जो न्याय करें और क़ायदाधीश वो होता है जिसे सब कुछ पता हो, दिख रहा हो लेकिन कानून की किताब ने उसके हाथ बांधे हो और उस किताब के अनुसार सज़ा सुनाई जानी हो.

ऐसे बहुत से केस होते हैं, जिसमे चोरी, बलात्कार, आतंकवाद, हत्या, भ्रस्टाचार आदि मामलों में मुज़रिम पकडे जाते हैं, सब जानते है वो मुज़रिम है और उसे सज़ा मिलनी चाहिए. लेकिन उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के चलते वो अदालत से बरी हो जाता है.

ऐसा ही एक मामला केरल हाईकोर्ट का सामने आया हैं, बताया जा रहा है की नाबालिक लड़की से बलात्कार के मामले में एक मुज़रिम को हाईकोर्ट ने आठ महीने में ही जमानत पर रिहा करने का फैसला सुना दिया.

नाबालिक पीड़िता का पिता, कोर्ट के इस फैसले से बहुत ही ज्यादा नाराज़ था, इसलिए जब उसे एहसास हुआ की अब कोर्ट से उसे न्याय नहीं मिल सकता तो उसने आरोपी को सज़ा देने का खुद ही फैसला कर दिया.

जिस दिन अपराधी कोर्ट से जमानत की कार्यवाही पूरी करते हुए बाहर आया, उसी वक़्त नाबालिक पीड़िता के पिता ने उसे गोली मार कर जान से मार दिया. इसके बाद पुलिस ने लड़की के पिता को कानून के मुताबिक़ गिरफ्तार कर लिया.

इस घटना की जानकारी ट्विटर पर ‘डॉ सीमा’ नाम के एक यूजर ने दी है, फिलहाल इसके इलावा कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है अभी. लेकिन ट्विटर यूज़र्स लड़की के पिता द्वारा उठाये गए हथ्यार को सही मान रहें है. भले ही लड़की के पिता द्वारा किया गया यह काम पुलिस और जज साहब को भी भीतर से सही लगे, लेकिन कानून के मुताबिक़ उन्हें लड़की के पिता को वही सज़ा देनी होगी जो हमारे देश के कानून की किताब में लिखी हैं.

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