भारत का प्रशासन और व्यवस्था ऐसी है की आप न तो इनपर सवाल उठा सकते है और न ही इनका कोई इलाज़ कर सकते है. तनख्वा की बात करें तो सरकारी मुलाज़िम 50-70 हज़ार कमाने के बाद भी आपको सड़कों पर धरना देते मिलेंगे की हमारी तनख्वा बढ़ाई जाए और जब इनसे काम की बात की जाये तो एक काउंटर से दूसरे काउंटर तक भेजने को ही यह अपना काम समझते है.
आज हम बात करने जा रहें है इसी प्रशासन की एक ऐसी लापरवाही की जिसमे एक चार महीने की बेटी और सात साल का बच्चा अपने पिता को खो देता है. हम बात कर रहें है उस पत्नी की जो रात भर स्टेशन में बैठ कर अपने पति के आने का इंतजार करती रही, जब पति नहीं आया तो खुद ही रिक्शा करके घर पहुंची और आगे पति की लाश मिली.
हम बात कर रहें है उस व्यक्ति की जो अपनी पत्नी और बच्चों को लेने के लिए स्टेशन जा रहा था, लेकिन रास्ते में खुला गटर का ढक्कन उसकी जान ले गया. आखिर कौन है इस मौत का जिम्मेदार? अगर समाज और न्यायपालिका को किसी एक व्यक्ति को दोषी बनाना हो तो वो किसे बनाएगी?
यह घटना है पानीपत के विकास नगर की जहां उतर प्रदेश के बदायूं में अलाहपुर गांव का 25 वर्षीय इब्राहिम अपने परिवार के अच्छे पालन पोषण के लिए यहाँ किराए के घर में आकर बसा था. उसकी पत्नी भूरी जो की अपनी चचेरी ननद की शादी में अलाहपुर गांव से लौटकर पानीपत रेलवे स्टेशन पर अपने पति का इंतजार कर रही थी.
पडोसी से बाइक उधार मांगकर अपनी पत्नी को रेलवे स्टेशन पर लेने जा रहे इब्राहिम का अनाज मंडी के धर्मकांटा के पास सीवर के खुले ढक्कन के कारण एक्सीडेंट हो गया. लोगों ने पुलिस को बताया तो सेक्टर-29 थाना पुलिस घायल इब्राहिम को सामान्य अस्पताल ले गयी जहां उसे मृत घोसित किया गया.
पुलिस और प्रशासन दोनों ही इस घटना को महज़ एक एक्सीडेंट बता रहें है. लेकिन क्या यह एक्सीडेंट रोका नहीं जा सकता था? क्या प्रशासन उस ढकन को बंद नहीं कर सकता था, प्रशासन की एक छोटी सी लापरहावी ने किसी के सर से उसके पिता का साया छिन लिया और बता रहें है की यह महज़ एक एक्सीडेंट था.