एक व्यक्ति ने दिया था शिवसेना को वोट, एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन के खिलाफ पहुंचा थाने

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भारत एक लोकतंत्र वाला देश हैं यानी लोगों द्वारा चुना गया नेता ही आगे जाकर सरकार चलाता है. इसी कड़ी में कई बार पार्टियां चुनावों में एक दूसरे के साथ विरोध करके लोगों को अपनी और आकर्षित करती है और बाद में फिर एक दूसरे के साथ गठबंधन करके लोगों को बेवकूफ बनाने का काम करती है.

ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी हुआ था, बीजेपी/शिवसेना को हिंदूवादी पार्टी माना जाता है और एनसीपी/कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी माना जाता है. दोनों ने अलग-अलग मुद्दों के साथ एक दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. जाहिर है इसमें शिवसेना/बीजेपी वाले गठबंधन को बहुमत का आंकड़ा हासिल हुआ.

फिर शिवसेना ने ब्यान दिया की हम गठबंधन तभी करेंगे अगर बीजेपी शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाएगी. इसी पद को लेकर विवाद इतना बड़ा की शिवसेना ने एनडीए से बाहर आने का फैसला कर लिया और शिवसेना के एक मंत्री ने मोदी के मंत्रिमंडल से अस्तीफा दे दिया.

शिवसेना तब से ही एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए उनकी सभी शर्तें मान रही हैं, जिसमे वीर सावरकर को भारत रत्न देने का विरोध करना और महाराष्ट्र में 5 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण देना.

शिवसेना के इस गठबंधन से नाराज़ होकर रत्नाकर चौरे नाम के शख्स ने विधायक प्रदीप जायसवाल, चंद्रकांत खैरे और उद्धव ठाकरे के खिलाफ वोट के साथ चीटिंग करने का मामला दर्ज़ करवा दिया है. रत्नाकर चौरे ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा है की शिवसेना ने मेरे और मेरे परिवार के वोटों के साथ चीटिंग की हैं.

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बताया जा रहा है की यह एफआईआर बेगमपुरा पुलिस स्टेशन और मीडिया के साथ बातचीत करते हुए रत्नाकर चौरे ने कहा है की, “चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे, चंद्रकांत खैरे और प्रदीप जायसवाल ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनाने के नाम पर वोट मांगा. लेकिन, चुनाव नतीजों के बाद अब शिवसेना खिलाफ में चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के साथ सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. यह मेरे और मेरे परिवार के वोट के साथ चीटिंग है. इसलिए इन तीनों पर मामला दर्ज हो.”

लेकिन संविधान के अनुसार कोई भी पार्टी किसी भी पार्टी के साथ चुनाव से पहले या बाद में गठबंधन कर सकती है यह उसका अधिकार है की वो अपने सिद्धांतों पर कायम रहना चाहती है या नहीं. इसलिए शायद ही इस एफआईआर के तहत कोई कार्यवाही हो. लेकिन जनता के सवालों का जवाब तो आपको देना ही पड़ता है चाहे सत्ता में रहकर दीजिये या फिर अगले चुनावों के प्रचार में.

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