नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ मुस्लिम लीग पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कपिल सिब्बल हैं वकील

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एक बड़ी खबर इस वक़्त आ रही है की लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास हो चुके नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के खिलाफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया हैं.

जमीअत उलेमा-ए-हिंद और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और कांग्रेस, नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मांग करेगी की इस बिल को असवैंधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया जाए.

इस बिल के पास होते ही महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग में बतौर आईजीपी तैनात अब्दुल रहमान और एक आईपीएस ने अपना विरोध जताते हुए अपने पद से अस्तीफा दे दिया. रहमान ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में मीडिया से बातचीत करते हुए बयान दिया है की, “नागरिकता संशोधन बिल संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है. मैं इस बिल की निंदा करता हूं. सविनय अवज्ञा में मैंने कल से कार्यालय में उपस्थित नहीं होने का निर्णय लिया है. मैं आखिरकार अपनी सेवा से इस्तीफा दे रहा हूं.”

लेकिन मीडिया के अनुसार अब्दुल रेहमान ने अगस्त 2019 में ही रिटायरमेंट के लिए अप्लाई कर दिया था, अब क्योंकि उसकी रिटायरमेंट की अर्जी इस दौरान एक्सेप्ट हुई है. इसलिए रेहमान ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए सस्ती लोक-प्रियकता मीडिया और सोशल मीडिया के जमाने में हासिल करने की कोशिश की हैं.

विपक्ष के साथ-साथ पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों खासतौर पर असम में इसका हिंसक प्रदर्शन जारी हैं, आपको बता दें की 19 लाख लोगों की जो एनआरसी के तहत पहचान की गयी थी, उनमे से 11 लाख लोग गैर मुस्लिम थे. बस यही एक कारण हैं की बीजेपी गैर मुसलमानों को बचाने के लिए यह बिल लेकर आयी हैं.

लेकिन असम के लोगों का कहना है की अगर इन 11 लाख गैर मुसलमानों को भी भारत का नागरिकता दे दी जाती है तो ऐसे में असम में सरकारी नौकरी और अन्य काम-काज़ पर भी उनका सम्मान अधिकार होगा ऐसे में जो मूल निवासी हैं असम के उनके अधिकारों का क्या होगा?

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