
नए नियमों और फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे जेएनयू के छात्र जेएनयू से संसद तक मार्च निकालना चाहते थे. अब क्योंकि संसद में शीतकालीन सत्र का पहला दिन था और कई नेता और प्रधानमंत्री संसद के अंदर थे तो पुलिस किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी.
इसलिए पुलिस ने बीच रास्ते पर बेरिकेट्स लगा दिए और छात्रों को आगे जाने से रोका, कुछ देर शांतिमय माहौल कायम रहा लेकिन फिर छात्रों ने बेरिकेट्स को तोड़कर संसद तक जाने का प्रयास किया. नतीजा यह हुआ की पहले पुलिस ने माइक से चेतावनी दी फिर पुलिस ने ठन्डे पानी की बौछार की उसके बाद पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा.
अब जब पुलिस ने अपनी कार्यवाही शुरू की तो लाठियों के बीच वह छात्र भी आये जो देख नहीं सकते थे ऐसे में एक नाम जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के स्टूडेंट यूनियन काउंसलर शशि भूषण का भी था. शशि भूषण बताते हैं की, “मैंने उन्हें बताया कि मैं दृष्टि बाधित हूं. मैंने उन्हें चश्मा उतारकर दिखाया ताकि पुलिसवाले यह समझ जाएं लेकिन वे नहीं रुके. वे मुझे मारते रहे.”
पीटने के बाद शशि भूषण को एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराना पड़ा जहां उन्होंने मीडिया को अपनी आपबीती सुनाई. वहीं जेएनयू के एक पूर्व छात्र संदीप के लुइस ने मीडिया को बताया की, “जैसी ही बैरिकेड टूटा, उन्होंने छात्रों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया. मेरे साथ भी पुलिसवालों ने धक्कामुक्की की. उनमें से एक ने मेरा पैर खींचा जिससे मेरा संतुलन बिगड़ा और सिर फुटपाथ से टकरा गया. मेरे सिर में पांच टांके लगाने पड़े.”

ऐसा नहीं है की जेएनयू के केवल छात्रों की ही पटाई हुई है, पुलिस के लाठी चार्ज के दौरान कई अध्यापक भी पिटे गए हैं, जिनमे से एक नाम टीचर्स असोसिएशन के सचिव सुरजीत मजूमदार का भी रहा. सुरजीत मजूमदार बताते हैं की, “मुझे लात मारी गई, लाठी से मारा गया और धक्का दिया गया. दूसरे सहकर्मियों को भी सीने पर धक्का मारा गया. उन्हें अच्छी तरह पता था कि हम टीचर हैं, उन्होंने अनजाने में ऐसा नहीं किया. उन्होंने हमसे पूछा कि तुम लोग किस तरह के टीचर हो?”